शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

चित्रकूट की यादें

चित्रकूट में मुझे तो बहुत अच्छा लगा वंह जो जगह मुझे सबसे ज्यादा पसंद आयी वो है राम दर्शन जंहा पहुँच कर ऐसा लगता है कि प्रभु श्री राम की जीवन की सारी घटनायें अपनी आँखों के सामने घटित हो रही है । राम दर्शन एक स्थान है जंहा पर प्रभु श्री राम के जीवन की सजीव झांकी है । उसके बाद मुझे रामघाट बहुत पंसद आया वंहा का वातावरण बहुत ही रमणीय लगा वंहा शाम की आरती भी दर्शनीय  है । राम गंगा में एक चीज दुखी करती है वो है जंहा पर लोग स्नान करते है वंही पर नाले का पानी गिरता है ।चित्रकूट में पंडो की वसूली भी जबरदस्त है वंहा के पंडो ने एक नया तरीका ईजाद किया है रूपए  लेने का किसी भी मंदिर में घुसते ही पुजारी आपके ऊपर गदा रखेगा और कहेगा अमुक व्यक्ति ने फंला रुपया दान दिया । लो जी अब जब घोषणा हो गई तो दान तो देना ही पड़ेगा । गुप्त गोदावरी गुफा में जब प्रवेश किया तभी उसकी प्राचीनता का एहसास हो जाता है । गुप्त गोदावरी में एक पवित्र एहसास होता है । वंहा जलधारा का निरंतर प्रवाह  गुफा के अन्दर होता रहता है । सती अनुसूइआ आश्रम का सरोवर  बहुत ही विशाल है जो बहुत ही स्वच्छ है जिसमे अनेको प्रकार की सुन्दर छोटी बड़ी मछलियाँ पाई जाती है ।कुल मिला कर चित्रकूट की यात्रा बहुत ही आनंदमयी रही । उसके बाद फिर हम माता मैहर वाली के दर्शन करने के लिए गए जिसकी चर्चा अगली कड़ी में

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

स्वाभिमान

किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था।
उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकने की कोशिश की।
उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया।
उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’।

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

चित्रकूट दर्शन

चित्रकूट में हम स्फटिक शिला के दर्शन के पश्चात् सती अनुसुइया के आश्रम गए वंहा आश्रम जैसा तो कुछ नहीं था पर विशाल मंदिर अवश्य था जिसके अन्दर उस समय की प्रमुख घटनाओं को वर्णन करते झाँकिमय मूर्तिया मौजूद थी उनमे से कई तो अत्यंत ही भव्य थी ।  उस मंदिर के सम्मुख ही एक अत्यंत सुन्दर और विशाल सरोवर है जिसमें अनेकों प्रकार की सुन्दर  मछलियाँ भी मौजूद है । वंहा काफी देर रुकने के पश्चात हम लोग गुप्त गोदावरी गए जंहा पर दो गुफाएँ मौजूद है एक गुफा का प्रवेश मार्ग थोडा संकरा है जिसके अन्दर निरंतर जलधारा का प्रवाह होता रहता है ।  गुफा के अन्दर का दृश्य बड़ा ही मनोरम है ।गुफा से निकलकर हम लोगों ने  वहीं पर थोड़ी देर विश्राम किया । उसके पश्चात् हम लोग फिर हनुमान धारा गए जंहा पर काफी उचांई पर हनुमान मंदिर स्थित है और वंहा की एक खास बात ये है कि वंहा पर जल धारा का प्रवाह लगातार होता रहता है वहीँ पर और ऊंचाई पर सीता रसोई स्थित है । वंहा से हम लोगो ने वापस आकर थोड़ी खरीदारी की जिसमे वंहा की बनी खूबसूरत लकड़ी की कार और कुछ चाबी के गुच्छे तथा अपने छोटे भांजे के लिए हाथ में पहनने वाले कंगन ।

रविवार, 7 अप्रैल 2013

चित्रकूट में दूसरा दिन

सुबह जल्दी ही हम सभी लोग तैयार हो गए । पहले हम लोग जानकी कुंड गए बताते है कि सीता माता यंहा स्नान करने आया करती थी । वंहा कुछ देर रुकने के उपरान्त हम लोग फिर राम दर्शन के लिए गए वंहा तो करीब एक घंटे हम लोग रुके । वंह पहुँच कर लगा जैसे प्रभु श्री राम की सारी जीवन गाथा सजीव हों गयी है । वंहा की झांकी में जितनी सजीविता है वैसी शायद ही कंही देखने को मिले । वंहा एक बात और अच्छी देखने को मिली वो ये कि रामायण जितनी भी विदेशी भाषाओं में लिखी गयी उन सबकी एक-एक प्रति वंहा पर मौजूद थी  ।साथ ही चीन रूस फ्रांस आदि जितने भी देशो में रामायण का मंचन हुआ है वंहा की फोटो मौजूद थी । वंहा फोटो खीचना मना था  इसलिए चाह कर भी फोटो नहीं खीच सका । इसके बाद हम लोग स्फटिक शिला देखने गए बताते है कि प्रभु श्री राम और माता सीता यंही पर बैठ कर चित्रकूट की सुन्दरता को निहारा करते थे । वंह पर माता सीता के पदचिन्ह अब भी मौजूद है ।