मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

जीवन दर्शन

जीवन व्यवहार का अभिन्न अंग है शब्द । इसके बिना व्यवहार जीवन का आदान प्रदान बहुत सीमित हो जाता है । क्या शब्द की महत्ता केवल सम्प्रेषण ही है अथवा व्यवहार बनाए रखने तक ही है ? आचार्यों ने जितना महत्व शब्द का बताया, उससे कहीं बङा मौन का भी बताया है । क्या मौन में शब्द लुप्त हो जाते है ? हर देश की अपनी भाषा और हर भाषा की अपनी वर्णमाला होती है । क्या वर्णमाला का उद्देश्य मात्र भाषा का स्वरूप तय करना ही होता है ? जीवन में शब्द को ही मंत्र के रूप में पूजा जाता है । इनके पीछे कौन से सिद्धांत है ?
                                                                           (मानस-२ से)
               मेरा मूलमंत्र है जहाँ से जो कुछ अच्छा मिले, सीखना चाहिए ।
                                                         - स्वामी विवेकानन्द

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

सुकून के पल

किसी ने सही कहा है कि दुनिया को जीतने से पहले हमें स्वंय को जीतना चाहिए । आज के आधुनिक जीवन मे सबसे बडी समस्या तो मन की उथल पुथल से पार पाने की है । हम जितना आराम और सुख चाहते है आज के प्रचलित तरीको से उतना ही मन अशान्त हो रहा है । मुझे महसूस होता है कि मै लम्बे अर्से से सुकून नहीं पा सका हूँ । पर फिर यहीं सोचता हूँ कि सुकून हमें खोजना पडता है ना कि ये हमे हथेली मे सजा मिलेगा कि आओं और सुकून का उपभोग करों और चलते बनों । आज की जीवनशैली की सबसे बडी समस्या समय का ना होना भी है । कारण रात को देर तक उठना और सुबह देर से जागना और उस पर भी अस्त व्यस्त जीवन शैली । मेरी जीवनशैली का तो ये हाल है कि रात को बारह बजे तक जागना और सुबह नौ बजे तक सोना फिर काम की आपाधापी मे पड जाना और काम इतना कि खुद के लिए भी समय ना मिलना । कभी फुरसत के पल मिल जाये तो बहुत सुकून महसूस होता है । मेरा व्यापार मे तो ग्राहक सुबह सात बजे से लेकर रात को नो बजे तक कभी भी मुझे सम्पर्क कर सकता है और मै उसे मना भी नहीं कर सकता हूँ । बस कभी-कभी मन यहीं होता है कि लम्बे समय के लिए घूमने का प्रोगाम बनाउँ और खूब मौज मस्ती करूँ ।