सोमवार, 2 दिसंबर 2013

हिटलर - एक अनोखा क्रूर व्यक्तित्व

इस समय मै हिटलर की जीवनी पढ़ रहा हूँ । हिटलर का व्यक्तित्व  भी अनोखा था उसने मानव समाज को दिखला दिया कि व्यक्ति कोई भी ऊंचाई प्राप्त कर सकता है बस उसमे आत्म विश्वास और आत्म निष्ठा होनी चाहिए । हिटलर का एक और प्रमुख गुण ये था कि वो मानवीय गुणों को जबरदस्त पारखी था । उसे बखूबी मालूम था कि किस व्यक्ति को क्या चाहिए और वो उस व्यक्ति की वो इच्छा पूरी करता था और वो उससे अपना काम बखूबी लेता था । उसके हिंसक और खतरनाक इरादों को बहुत ही कम लोग भाप पाए । उसके शुरूआती जीवन मे किसी को भी ये अहसास नहीं था कि एक साधारण सा युवक एक दिन जर्मनी का सर्वेसर्वा बन जायेगा और पूरे विश्व को भीषण युद्ध की विभीषिका मे झोंक देगा ।

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

मेरा निजी जीवन दर्शन

कभी-कभी मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि मै खुद के बारे में कितना कम जानता हूँ । खुद से सवाल पूछता हूँ कि मै खुद के बारे में ज्यादा से ज्यादा कैसे जान सकता हूँ । सवाल कई है पर जवाब नहीं । इन सवालों के जवाब कंहा मिलेंगे ये भी नहीं पता । इंसानी जीवन का सबसे मूलभूत प्रश्न यही है कि मेरा उद्देश्य क्या है और आज उसी स्थिति से मै जूझ रहा हूँ । ना ही कोई मार्गदर्शक है और न ही कोई सहायता देने वाला । सब कुछ खुद को ही करना है । एक बात मैंने अपने जीवन से सीखी है वो ये कि दुनिया में इंसान अकेला आता है और अकेला ही मरता है तथा अकेला ही जीता है देखने के लिए तो दोस्त, परिवार, रिश्तेदार आदि लोग होते है पर वास्तव में देखा जाए तो इंसान सारी जिन्दगी अकेला ही जीता है । पर एक सत्य यह भी है कि इनके बिना भी हमारी जिंदगी एक बोझ सी लगने लगेगी ।इस जीवन को जीने का सार्थक तरीका है लक्ष्य को तय करना और उसकी पूर्ति में लगे रहना ।

सोमवार, 9 सितंबर 2013

दक्षिण भारत की यात्रा की शुरूआत

दक्षिण भारत का एक स्टेशन

सुन्दर पहाडी द्रश्य

सुन्दर प्रतिमा तिरूपति नगर मे स्थित
मै हमेशा अपने दोस्तों से कहता हूँ कि मै लम्बे समय की योजनाएँ नहीं बनाता हूँ खासकर पर्यटन की तो नहीं । मै हमेशा पर्यटन कि योजना दो या तीन दिन पहले ही बनाता हूँ । इस बार भी यहीं हुआ । एक दोस्त ने तीन दिन पहले पूछा कि दक्षिण भारत घूमने चलना है चलोगे तो मैने कहा अगले दिन बतायेंगे । देखा रोजगार भी धीमी गति मे हैं । घर मे पूछा तो इजाजत मिल गई इसलिए हाँ कर दी । बस फिर क्या हमारा बैग पैक हो गया और दो दिन बाद वो शुभ घडी आ ही गई अर्थात २०-७-२०‍१३ को जब हमे निकलना था । सबसे पहले तो हम कानपुर सैट्रंल रेलवे स्टेशन पहुँचे जँहा से हमारी ट्रैन थी झांसी इण्टरसिटी एक्सप्रेस जिसका समय था शाम को ०६ बजकर ३० मिनट । खैर जिसके लिए भारतीय रेल मशहूर है  वो ट्रैन चली ०६ बजकर ४५ मिनट पर जिसने हमें पहुचाँया ‍१‍१ बजे झाँसी स्टेशन पर । हमारा मन तो बहुत था झाँसी घूमने का पर मन मसोस कर रह गये  वीरबालाओं की धरती पर भ्रमण करने को क्योंकि हमारी ट्रेन  जो थी ०‍१ बजकर ‍१० मिनट की । इसलिए हमें स्‍टेशन पर रूक कर ही दो घण्टे का समय बिताना था । इस पर्यटन कार्यकम्र मे पाँच लोग थे । 



सोमवार, 1 जुलाई 2013

मन के जज्बात

अमरनाथ जाते हुए मार्ग मे
आज इतने दिनों बाद लेखन करने बैठा हूँ तो सोचता हूँ क्या लिँखू ? बस अब मन में यही आ रहा है कि अपने मन के जज्बात लिखूँ क्योंकि उन्हें मै किसी से साझा नहीं कर पाता हूँ । सच कहूँ तो अब तक ऐसा कोई मित्र मिला ही नहीं जिससे अपने मन की बात साझा कर सकूँ । मन भी एक सागर की तरह है कभी शांत तो कभी विचार रूपी लहरें उठा करती है । यहीं मन अगर संतुलित ना रहे तो व्यक्ति अपना व्यक्तित्व तक खो बैठता है । अपने बारे मे मुझे ऐसा लगता है कि मुझमे नकारात्मक विचार ज्यादा है और उसी वजह से ही मै आगे अपनी मंजिल की और नहीं बढ पा रहा हूँ ।मै इन नकारात्मक विचारों से जल्द से जल्द छुटकारा पाना चाहता हूँ  क्योंकि नकारात्मक विचार जीवन को कभी सकारात्मक रूख नहीं दे पायेंगे । सकारात्मक सोच जीवन में सदा ख़ुशियाँ ही लाती है । मैं हमेढर्रें पर लौट आता । परेशान हो गया हूँ अपनी इस मानसिक दुर्बलता से । अभी गीता पढ रहा हूँ ज्यादा नहीं अभी कुछ दोहे और उनका कुछ अर्थ ही पढा है । गीता मे कहा गया है आत्मा अनश्वर और अविकृत है । आत्मा मे परिवर्तन का कोई गुण नहीं है फिर मैं ये सोचने लगा कि परिवर्तन बिना संसार कैसे चलेगा । परिवर्तन तो संसार का नियम है और यही सुख और दुःख का मूल है फिर मन मे तर्क उठता है कि आत्मा सुख-दुःख और इस प्रकृति से भी परे है । गीता मे कहा गया है कि आत्मा चिंतन  का भी विषय नहीं है अर्थात आत्मा का चिंतन संभव ही नहीं है । मुझे तो सबसे कठिन कार्य जीवन मे सतुंलन बैठाना लगता है कभी एक चीज पर ध्यान दो तो लगता है कि दूसरे पर भी काम करना जरूरी है । एक को महत्व दो तो दूसरा कार्य भी महत्वपूर्ण लगने लगता है ऐसे में यहीं उलझन होती है क्या करे और क्या ना करे ।
शा से ही लकीर का फ़क़ीर रहा कारण कि मैं हमेशा अलग परिणाम की चाह में योजनाएँ बनाता पर कुछ ही दिनों मे फिर पुराने

शुक्रवार, 21 जून 2013

भव्य सुंदरकांड का आयोजन

अचलगंज ग्राम के माता महामाई के मंदिर मे भव्य सुंदरकांड का आयोजन हुआ जिसमे शामिल होकर बहुत ही आनन्द आया । आपसे उस पल को साझा करते हुए

सुंदरकांड का पाठ करते हुए भक्तगण


माता महामाई का मंदिर 


श्रंगारयुक्त शिवलिंग


माता महामाई की पावन प्रतिमा


राम भक्त हनुमान का दरबार


सोमवार, 17 जून 2013

मैहर की यात्रा

हम लोगों ने चित्रकूट से निकल कर फिर मैहर जाने का निश्चय किया । मैहर में माँ दुर्गा का शक्तिपीठ है जिनके नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम मैहर है । चित्रकूट से हम बस द्वारा मैहर के लिए निकले । बस सतना जिले तक जाती है  सतना जिला वंही है जंहा पर सतना सीमेंट की फैक्ट्री है । सतना जिला काफी बड़ा है । वंहा से हमने फिर बस पकड़ी और पहुँच गए मैहर । वंह का वातावरण भक्तिमय है और साथ ही प्रसाद की दुकानें अनगिनत । वंहा प्रसाद की दुकानों में एक अच्छी व्यवस्था है आप उन्ही दुकानों में प्रसाद लीजिए और वही विश्राम भी कीजिए । वंहा पर हम लोगों ने थोड़ी देर विश्राम किया उसके बाद फिर हम लोगो ने चढाई प्रारंभ की ।वंहा मंदिर परिसर में  हम लोगो को बहुत ही सुकून महसूस हुआ आखिर माता के चरण के पास जो थे वहां हम लोगो ने माता मैहर के दर्शन किए फिर थोड़ी देर मन्दिर परिसर मे ही रूक कर वहां के परिदृश्य का आनंद लिया । फिर हम लोगो ने नीचे उतरना प्रारम्भ किया नीचे उतरने मे  आधा घन्टा लगा । वंहा उतर कर हम लोगो ने भोजन किया फिर थोडी देर विश्राम किया । हमे लालसा थी वंहा के बाजार देखने की सो हम थोडी देर बाद ही निकल पडे चित्रकूट के बाजारों मे वंहा ज्यादा कुछ नहीं बस थोडा बहुत सामान लिया । चित्रकूट की एक खास बात है कि वहां खाना वाजिब कीमत पर सही गुणवत्ता का मिलता है पर खाना गरिष्ठ होता है । चित्रकूट मे आनंद तो बहुत आया अरे हाँ वहां हम लोगो ने दूर से ही एक अखाडा देखा तो बताया गया कि ये अखाडा आल्हा ऊदल का है वे यहाँ कुश्ती किया करते थे ।  हम लोगो की ट्रेन नौ बजे की थी सो हम लोग स्टेशन मे ही रूकने का फैसला किया  फिर क्या ट्रेन आई और हम लोग निकल पडे घर कि ओर ।
अगली चिट्ठी मे चर्चा करेंगे की वो कौन सी जगह थी जो हमसे छूट गयी घूमने के लिए ।
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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

चित्रकूट की यादें

चित्रकूट में मुझे तो बहुत अच्छा लगा वंह जो जगह मुझे सबसे ज्यादा पसंद आयी वो है राम दर्शन जंहा पहुँच कर ऐसा लगता है कि प्रभु श्री राम की जीवन की सारी घटनायें अपनी आँखों के सामने घटित हो रही है । राम दर्शन एक स्थान है जंहा पर प्रभु श्री राम के जीवन की सजीव झांकी है । उसके बाद मुझे रामघाट बहुत पंसद आया वंहा का वातावरण बहुत ही रमणीय लगा वंहा शाम की आरती भी दर्शनीय  है । राम गंगा में एक चीज दुखी करती है वो है जंहा पर लोग स्नान करते है वंही पर नाले का पानी गिरता है ।चित्रकूट में पंडो की वसूली भी जबरदस्त है वंहा के पंडो ने एक नया तरीका ईजाद किया है रूपए  लेने का किसी भी मंदिर में घुसते ही पुजारी आपके ऊपर गदा रखेगा और कहेगा अमुक व्यक्ति ने फंला रुपया दान दिया । लो जी अब जब घोषणा हो गई तो दान तो देना ही पड़ेगा । गुप्त गोदावरी गुफा में जब प्रवेश किया तभी उसकी प्राचीनता का एहसास हो जाता है । गुप्त गोदावरी में एक पवित्र एहसास होता है । वंहा जलधारा का निरंतर प्रवाह  गुफा के अन्दर होता रहता है । सती अनुसूइआ आश्रम का सरोवर  बहुत ही विशाल है जो बहुत ही स्वच्छ है जिसमे अनेको प्रकार की सुन्दर छोटी बड़ी मछलियाँ पाई जाती है ।कुल मिला कर चित्रकूट की यात्रा बहुत ही आनंदमयी रही । उसके बाद फिर हम माता मैहर वाली के दर्शन करने के लिए गए जिसकी चर्चा अगली कड़ी में

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

स्वाभिमान

किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था।
उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकने की कोशिश की।
उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया।
उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’।

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

चित्रकूट दर्शन

चित्रकूट में हम स्फटिक शिला के दर्शन के पश्चात् सती अनुसुइया के आश्रम गए वंहा आश्रम जैसा तो कुछ नहीं था पर विशाल मंदिर अवश्य था जिसके अन्दर उस समय की प्रमुख घटनाओं को वर्णन करते झाँकिमय मूर्तिया मौजूद थी उनमे से कई तो अत्यंत ही भव्य थी ।  उस मंदिर के सम्मुख ही एक अत्यंत सुन्दर और विशाल सरोवर है जिसमें अनेकों प्रकार की सुन्दर  मछलियाँ भी मौजूद है । वंहा काफी देर रुकने के पश्चात हम लोग गुप्त गोदावरी गए जंहा पर दो गुफाएँ मौजूद है एक गुफा का प्रवेश मार्ग थोडा संकरा है जिसके अन्दर निरंतर जलधारा का प्रवाह होता रहता है ।  गुफा के अन्दर का दृश्य बड़ा ही मनोरम है ।गुफा से निकलकर हम लोगों ने  वहीं पर थोड़ी देर विश्राम किया । उसके पश्चात् हम लोग फिर हनुमान धारा गए जंहा पर काफी उचांई पर हनुमान मंदिर स्थित है और वंहा की एक खास बात ये है कि वंहा पर जल धारा का प्रवाह लगातार होता रहता है वहीँ पर और ऊंचाई पर सीता रसोई स्थित है । वंहा से हम लोगो ने वापस आकर थोड़ी खरीदारी की जिसमे वंहा की बनी खूबसूरत लकड़ी की कार और कुछ चाबी के गुच्छे तथा अपने छोटे भांजे के लिए हाथ में पहनने वाले कंगन ।

रविवार, 7 अप्रैल 2013

चित्रकूट में दूसरा दिन

सुबह जल्दी ही हम सभी लोग तैयार हो गए । पहले हम लोग जानकी कुंड गए बताते है कि सीता माता यंहा स्नान करने आया करती थी । वंहा कुछ देर रुकने के उपरान्त हम लोग फिर राम दर्शन के लिए गए वंहा तो करीब एक घंटे हम लोग रुके । वंह पहुँच कर लगा जैसे प्रभु श्री राम की सारी जीवन गाथा सजीव हों गयी है । वंहा की झांकी में जितनी सजीविता है वैसी शायद ही कंही देखने को मिले । वंहा एक बात और अच्छी देखने को मिली वो ये कि रामायण जितनी भी विदेशी भाषाओं में लिखी गयी उन सबकी एक-एक प्रति वंहा पर मौजूद थी  ।साथ ही चीन रूस फ्रांस आदि जितने भी देशो में रामायण का मंचन हुआ है वंहा की फोटो मौजूद थी । वंहा फोटो खीचना मना था  इसलिए चाह कर भी फोटो नहीं खीच सका । इसके बाद हम लोग स्फटिक शिला देखने गए बताते है कि प्रभु श्री राम और माता सीता यंही पर बैठ कर चित्रकूट की सुन्दरता को निहारा करते थे । वंह पर माता सीता के पदचिन्ह अब भी मौजूद है ।

शनिवार, 30 मार्च 2013

चित्रकूट की यात्रा का पहला दिन

चित्रकूट में पहले दिन यानि कल पहले तो हम रामगंगा नहाने गये । आनन्द तो बहुत आया स्नान में लेकिन दुःख भी बहुत हुआ यंहा पर व्याप्त गन्दगी को देखकर । यंहा स्थानीय लोगो से बात करके मालूम हुआ कि प्रशासन एक प्लांट लगा रहा हें जो कि जल शोधन का कार्य करेगा पर पता नहीं इसे असली जामा कब तक पहुचाया जायगा । पर एक बात तो हैं कि गंगा में नहाकर तन मन में स्फूर्ति आ जाती हैं । गंगा में नहाने के बाद फिर थोड़ी देर आराम किया फिर हम लोग कामादानाथ मंदिर गए वंहा जाकर कामादानाथ की परिक्रमा की जिसका परिक्रमा पथ पांच किलोमीटर लम्बा है ।यंहा पर हम धर्मशाला में रुके थे जिसका नाम आगरा अग्रवाल धर्मशाला है । धर्मशाला की व्यवस्था संतोषजनक थी ।
जब शाम को हम परिक्रमा करके आये तो पेट में चूहे कूद रहे थे  तो फिर हम होटल  गए और वहां भोजन किया । वंहा का भोजन तो बढ़िया था पर वंहा एक व्यवस्था भोजन के थाली दर की है । वंहा पर 70 और 80 रूपये  की  थाल   है ।  फिलहाल पहला दिन तो आनंदमय रहा है ।

शुक्रवार, 29 मार्च 2013

चित्रकूट की यात्रा

आज चित्रकूट की यात्रा पर निकला हूँ ।काफी दिन से मन था कि प्रभु श्री राम ने जहाँ अपने वनवास का अधिकतम समय व्यतीत किया उस परम पुनीत पुण्य भूमि के दर्शन करूँ । उस जगह में जरुर कोई खास बात बात होगी जिसके लिए इस भूमि का चयन किया । चलो अब दो दिन चित्रकूट के दर्शन ही होंगे ।अभी तो फिलहाल बाँदा स्टेशन पंहुचा हूँ । शेष बाद में ।

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

जीवन दर्शन

जीवन व्यवहार का अभिन्न अंग है शब्द । इसके बिना व्यवहार जीवन का आदान प्रदान बहुत सीमित हो जाता है । क्या शब्द की महत्ता केवल सम्प्रेषण ही है अथवा व्यवहार बनाए रखने तक ही है ? आचार्यों ने जितना महत्व शब्द का बताया, उससे कहीं बङा मौन का भी बताया है । क्या मौन में शब्द लुप्त हो जाते है ? हर देश की अपनी भाषा और हर भाषा की अपनी वर्णमाला होती है । क्या वर्णमाला का उद्देश्य मात्र भाषा का स्वरूप तय करना ही होता है ? जीवन में शब्द को ही मंत्र के रूप में पूजा जाता है । इनके पीछे कौन से सिद्धांत है ?
                                                                           (मानस-२ से)
               मेरा मूलमंत्र है जहाँ से जो कुछ अच्छा मिले, सीखना चाहिए ।
                                                         - स्वामी विवेकानन्द

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

सुकून के पल

किसी ने सही कहा है कि दुनिया को जीतने से पहले हमें स्वंय को जीतना चाहिए । आज के आधुनिक जीवन मे सबसे बडी समस्या तो मन की उथल पुथल से पार पाने की है । हम जितना आराम और सुख चाहते है आज के प्रचलित तरीको से उतना ही मन अशान्त हो रहा है । मुझे महसूस होता है कि मै लम्बे अर्से से सुकून नहीं पा सका हूँ । पर फिर यहीं सोचता हूँ कि सुकून हमें खोजना पडता है ना कि ये हमे हथेली मे सजा मिलेगा कि आओं और सुकून का उपभोग करों और चलते बनों । आज की जीवनशैली की सबसे बडी समस्या समय का ना होना भी है । कारण रात को देर तक उठना और सुबह देर से जागना और उस पर भी अस्त व्यस्त जीवन शैली । मेरी जीवनशैली का तो ये हाल है कि रात को बारह बजे तक जागना और सुबह नौ बजे तक सोना फिर काम की आपाधापी मे पड जाना और काम इतना कि खुद के लिए भी समय ना मिलना । कभी फुरसत के पल मिल जाये तो बहुत सुकून महसूस होता है । मेरा व्यापार मे तो ग्राहक सुबह सात बजे से लेकर रात को नो बजे तक कभी भी मुझे सम्पर्क कर सकता है और मै उसे मना भी नहीं कर सकता हूँ । बस कभी-कभी मन यहीं होता है कि लम्बे समय के लिए घूमने का प्रोगाम बनाउँ और खूब मौज मस्ती करूँ ।

सोमवार, 28 जनवरी 2013

जिन्दगी की व्यस्तता

कभी-कभी जिन्दगी इतनी व्यस्त हो जाती है कि हम जिन्हें बहुत चाहते है उनसे मुलाकात भी नहीं कर पाते है । जैसे मै अपने भांजे से बहुत प्यार करता हूँ पर व्यस्तता के कारण उससे मुलाकात ही नहीं कर पाया पूरे दो महीने हो गये पर उसका वो प्यार भरा चेहरा  मै नहीं देख पाया हूँ । अब किसी भी दिन मै उससे मिलने के लिए  जाने ही वाला हूँ क्योंकि मुझे उसकी बहुत याद आ रही है । जब भी उसका चेहरा देखता हूँ तो जीवन की खूबसूरती का एहसास होता है और जिन्दगी के सारे तनाव भूल जाता हूँ । मुझे तो ऐसा लगता है कि बच्चे ईश्वर की सबसे प्यारी रचना है । वो हममें एक अलग ही एहसास जगाते है । उस अहसास को इतनी जल्दी नहीं भुलाया जा सकता है । मुझे अपने भांजे की सबसे अच्छी बात उसका मुस्कराना लगता है । जल्द ही उससे मुलाकात होगी ।

बुधवार, 23 जनवरी 2013

जीवन दर्शन

समय के नियोजन का अर्थ होगा, महत्वहीन विषयों मे समय ना  गंवाना पडे, हर पल लक्ष्य को ध्यान मे रखकर कार्य करने की जागरूकता बनी रहे । इसी का नाम तो साधना है । यही मोक्ष मार्ग है । हर पल हमारी मर्जी से बीते, हमारे समय पर अनाधिकार चेष्टा ना चल पाए । हम वहीं करे, सुने, पढे, देखे जो हमारे लक्ष्य की पूर्ति करे । अन्यथा कार्यों को शत्रु मानकर, जीवनचर्या से बाहर निकालने का प्रयास करें । हमारे पास सदा समय रहेगा । कभी 'समय नहीं है' की समस्या नहीं आएगी ।

महान बनों और अन्य मनुष्योंें होने वाली महानता तुम्हारी सहायता से मिलने के लि उठ खी होगी ।
                  - लावेल
बालहंस पत्रिका से साभार

सोमवार, 21 जनवरी 2013

नमस्कार

सबसे पहले तो महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर उनका शत-शत नमन ।
काश आज हम सबके ह्रदय मे भी ऐसे ही स्वदेश प्रेम की आग जलती जैसे महाराणा प्रताप के ह्रदय मे जलती थी । आज हम सबको उनके आदर्शों को मनन करना चाहिए और अपने जीवन में भी उतारना चाहिए । जिस दिन ऐसा हो गया उसी दिन से हमारे देश की कई समस्यायें स्वतः गायब हो जाएंगी ।
बहुत दिनों से लिखने का मन कर रहा था परन्तु व्यस्तता से मजबूर कारण एक नये आशियाने का निमार्ण कार्य । बस इसी वजह से इतने दिनो से लेखन से दूर था और वैसे भी मुझमें मौलिक लेखन का अभाव है । इतने दिनों बाद अपने मन के विचारों को साझा कर रहा हूँ वरना मै ज्यादा अपनी बात शेयर नहीं करता । कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता है कि मै खुद एक अबूझ पहेली बनना चाहता हूँ परन्तु फिर यहीं सोचता हूँ कि अपनी ही बनाई हुई पहेली में मै उलझ ना जाऊँ ।